Porwal   Duniya

Copyright ©2023-2024 porwalduniya.com

Disable Preloader

Porwal Samaj History

पोरवाल समाज का इतिहास

जांगडा पोरवाल समाज की उत्पत्ति

गौरी शंकर हीराचंद ओझा (इण्डियन एक्टीक्वेरी, जिल्द 40 पृष्ठ क्र.28) के अनुसार आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व बीकानेर तथा जोधपुरा राज्य (प्राग्वाट प्रदेश) के उत्तरी भाग जिसमें नागौर आदि परगने हैं, जांगल प्रदेश कहलाता था।

जांगल प्रदेश में पोरवालों का बहुत अधिक वर्चस्व था। समय-समय पर उन्होंने अपने शौर्य गुण के आधार पर जंग में भाग लेकर अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और मरते दम तक भी युद्ध भूमि में डटे रहते थे। अपने इसी गुण के कारण ये जांगडा पोरवाल (जंग में डटे रहने वाले पोरवाल) कहलाये। नौवीं और दसवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर हुए विदेशी आक्रमणों से, अकाल, अनावृष्टि और प्लेग जैसी महामारियों के फैलने के कारण अपने बचाव के लिये एवं आजीविका हेतू जांगल प्रदेश से पलायन करना प्रारंभ कर दिया। अनेक पोरवाल अयोध्या और दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गये। दिल्ली में रहनेवाले पोरवाल “पुरवाल”कहलाये जबकि अयोध्या के आस-पास रहने वाले “पुरवार”कहलाये। इसी प्रकार सैकड़ों परिवार वर्तमान मध्यप्रदेश के दक्षिण-प्रश्चिम क्षेत्र (मालवांचल) में आकर बस गये। यहां ये पोरवाल व्यवसाय /व्यापार और कृषि के आधार पर अलग-अलग समूहों में रहने लगे। इन समूह विशेष को एक समूह नाम (गौत्र) दिया जाने लगा। और ये जांगल प्रदेश से आने वाले जांगडा पोरवाल कहलाये। वर्तमान में इनकी कुल जनसंख्या 3 लाख 46 हजार (लगभग) है।

आमद पोरवाल कहलाने का कारण

इतिहासग्रंथो से ज्ञात होता है कि रामपुरा के आसपास का क्षेत्र और पठार आमदकहलाता था। 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में आमदगढ़ पर चन्द्रावतों का अधिकारथा। बाद में रामपुरा चन्द्रावतों का प्रमुखगढ़ बन गया। धीरे-धीरे न केवलचन्द्रावतों का राज्य ही समाप्त हो गया अपितु आमदगढ़ भी अपना वैभव खो बैठा।इसी आमदगढ़ किले में जांगडा पोरवालों के पूर्वज काफी अधिक संख्या में रहतेथे। जो आमदगढ़ का महत्व नष्ट होने के साथ ही दशपुर क्षेत्र के विभिन्नसुविधापूर्ण स्थानों में जाकर बसते रहे। कभी श्रेष्ठीवर्ग में प्रमुख मानाजाने वाला सुख सम्पन्न पोरवाल समाज कालांतर में पराभव (दरिद्रता) कीनिम्नतम् सीमा तक जा पहुंचा, अशिक्षा, धर्मभीरुता और प्राचीन रुढ़ियों कीइसके पराभव में प्रमुख भूमिका रही। कृषि और सामान्य व्यापार व्यवसाय केमाध्यम से इस समाज ने परिश्रमपूर्वक अपनी विशिष्ठ पहचान पुन: कायम की।किन्तु आमदगढ़ में रहने के कारण इस क्षेत्र के पोरवाल आज भी आमद पोरवालकहलाते है ।

सन्दर्भ ग्रन्थ – पोरवाल समाज का इतिहास